Ø 14.5c से 15.5c तक पानी का ताप बढ़ाने में जो आवश्यक ऊष्मा है वह 1 कैलोरी कहलाती है (1
कैलोरी= 4.186 जूल)
Ø केल्विन पैमाने पर मापे गये ताप को परमताप कहा
जाता है। जो ताप का SI
मात्रक भी है
Ø -40c = -40.F के होता है।
Ø C-0/180 = F-32/180 =
K-273/100 F से छोटा तापमापक C उससे बड़ा केल्विन तापमापी उष्मीय प्रसार
गुणाक सिद्धान्त पर कार्य करता है।
Ø एक स्वस्थ्य मनुष्य के शरीर का सामान्य ताप 98.4F या 36.9 C या (37.C) या 310K होता है।
Ø द्रव तापमापी में हमेशा पारे का प्रयोग इसलिए
किया जाता है क्योकि पारा चमकीलाअपारदर्शी व ताप का सुचालक है। और कांच पर चिपकता
भी नही है।
Ø रयूमर पैमाना का प्रयोग आजकल नही किया जाता
है।'
Ø वायु में ध्वनि का वेग तापमान घटने पर घटता
है। बढ़ने पर बढ़ता है। गैस तापमापी अधिक सुग्राहक होता है। क्योकि गैस में द्रवों
की अपेक्षा अधिक उष्मीय प्रसार होता है।
Ø रेखीय प्रसारः क्षेत्रीय प्रसारः
आयतन प्रसार का अनुपात होता है - 1:2:3 लोहा उष्मा पाकर बढ़ता है। तथा
जाड़ो में सिकुड़ता है इसलिए विद्युत एवं टेलिफोन के खम्भो में तार ढीले बाधे जाते
है। ट्रेन की पटरियो में स्थान छोड़ा जाता है। तथा पुल के गाटरो को एक सिर से बाधा
जाता है।
Ø गर्म चाय या पानी से कांच का
गिलास टूट जाता है। उष्मा पाकर आन्तरिक आकार बढ़ा देता है।
Ø पदार्थ - जो स्थान घेरता है जिसका
अपना द्रव्यमान होता है जिसका अनुभव ज्ञानेन्द्रियो द्वारा करते है।
Ø पदार्थ अवस्था – ठोस,द्रव,गैस - चौथी अवस्था –प्लाज्मा- 5वीं - (B.E.C
(Bose-Instine-Condenset)
Ø दाब = P = F/A, मात्रक = न्यूटन/मी2
या पास्कल
Ø क्षेत्रफल अधिक होने पर दाब कम हो
जाता है। क्षेत्रफल कम होने पर दाब अधिक हो जाता है।
Ø वायुयान में फाउण्टेन पेन व हाई
ब्लड प्रेसर वाले व्यक्ति को वायुदाब कम होने के कारण यात्रा न करने की सलाह दी
जाती है।
Ø गहराई बढ़ने पर द्रव का दाब भी
बढ़ता है।
Ø समान ऊचाई पर दाब समान रहता है।
Ø द्रव की ऊपरी युक्त तल पर द्रव का
दाब शून्य होता है।
Ø पास्कल नियम पर आधारित यन्त्र -
हाइड्रोलिक प्रेस, हाइड्रोलिक
लिफ्ट, हाइड्रोलिक
ब्रेक
Ø कुकर में जल्दीखाना पकना वायुदाब
के कारण ही सम्भव है।
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Ø जब जहाज नदी से सागर में प्रवेश
करता है तो जहाज थोडा ऊपर की ओर उठ जाता है इसका मुख्य कारण पानी का पृष्ठ तनाव व
क्षेत्रफल का अधिक होता है।
Ø 4C पर व्यक्ति तैरता है जबकि 100-C पर पानी में डूब जायेगा क्योकि
पानी का घनत्व शरीर के घनत्व से कम हो जायेगा।
Ø बर्फ का टुकड़ा पानी में तैरता
है। जिसका 9/10 भाग पानी में ओर 1/10 भाग पानी से बाहर तथा पिघलने पर बर्तन के पानी
स्तर पर कोई प्रभाव नही डालता है।
Ø आर्किमीडिज ने सोने की शुद्धता का
पता आपेक्षित घनत्व के सिद्धान्त से लगाया था।
Ø पानी का आपेक्षित घनत्व सर्वाधिक 4 C पर तथा न्यूनतम आयतन होता है और 4C से ऊपर या नीचे ताप होने पर पानी
का आपेक्षित घनत्व कम होता है अर्थात पानी का सर्वाधिक वजन 4C पर होता है।
Ø लोहे में पारा डूब जाता है या
पारे में लोहा तैरता है
Ø क्विक सिल्वर धातु घनत्व पारा के
अधिक होने के कारण
Ø जब बैरोमीटर का पाठ्यांक एकाएक
नीचे गिरता है तो आंधी आने की सम्भावना
Ø जब पाठ्याक धीरे-धीरे नीचे गिरता है तो वर्षा
आने की सम्भावना
Ø जब पाठ्याक ऊपर चढ़ता है तो मौसम साफ के संकेत
होते है।
Ø गर्मी अधिक होने दाब(वायुदाब) कम हो जाता है।
जबकि ध्वनि पर दाब का कोई अन्तर नहीं पड़ता है।
Ø पानी पर तैरती वस्तु का आभाषी भार
शून्य होता है।
Ø लोहे की सुई पानी पर तैरती है – पृष्ठ तनाव का अधिक होने के कारण
Ø मच्छर तैरता है- पृष्ठ तनाव का अधिक होने के
कारण
Ø पृष्ठ तनाव एक द्रव में या ठोस में पाया जाने
वाला गुण है। जिससे ससंजक बल की उपस्थिति के कारण तनाव आता है।
Ø सिक्के का पानी मे ऊपर दिखाई देना, छड़ का टेढ़ा दिखाई देना , मछली की गहराई कम दिखाई देना आदि
- सभी वस्तु के अपवर्तन के कारण ही सम्भव होते है
Ø किसी माध्य का प्रकाश वेग बढ़ाने
पर उस माध्यम में प्रकाश का वेग अपरिवर्तित रहता है।
Ø मृग मरिचिका (MIRAGE) में प्रकाश का अपवर्तन व पूर्ण आन्तरिक
परावर्तन होता है।
Ø एण्डोस्कोपी (आन्तरिक वेट का परिक्षण) - पूर्ण
आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
Ø हीरे की चमक हीरे से वायु में आने वाला किरण के
लिए क्रान्तिक कोण बहुत कम केवल 24 होता है। |
Ø आप्टीकल फाइबर(प्रकाश तन्तु) पूर्ण आन्तरिक
परावर्तन कार्य करता है। चन्द्रमा के तल से आकाश का रंग काला है।
Ø प्रकीर्णन के कारण आसमान नीला रंग दिखाई देता
है।
Ø खतरे का निशान, सिग्लन या संकेतक प्राय लाल रंग
के अधिक तरंग दैर्ध्य के कारण
Ø प्रकाश की किरणों का प्रकीर्णन सर
.सी.वी. रमन ने किया था।
Ø सर्वाधिक तंरग दैर्ध्य लाल रंग का
जबकि सबसे कम बैगनी रंग का जबकि प्रकीर्णन सबसे ज्यादा बैगनी रंग का और प्रकीर्णन सबसे कम लाल रंग का होता है।
Ø इन्द्रधनुष , परावर्तन, अपवर्तन तथा पूर्ण आन्तरिक
परावर्तन का उदाहरण है।
Ø इन्द्रधनुष का मध्य रंग हरा व
बाहर लाल अन्दर बैगनी तो प्राथमिक इन्द्र धनुष में दो बार अपवर्तन व एक बार पूर्ण
आन्तरिक परावर्तन तथा दो बार अपवर्तन व दो ही बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तन द्धितीय
इन्द्र धनुष में होता है। (12 बजे इन्द्र धनुष) नहीं बनता
Ø प्राथमिक रंग – लाल,हरा, नीला - (रंगीन टी.वी. के रंग)
Ø द्वितीयक रंग जो प्राथमिक की
सहायता से बनते है। बैगनी,पीला,नारंगी आदि
Ø पूरक रंग – जिन दो रंगों के मिलाने से श्वेत
रंग बनता है
Ø पीली रोशनी में गहरी नीली वस्तु
काली दिखाई देती है।
Ø साबुन के पतले झाग में चमकदार
रंगों का बनना प्रकाश के व्यतिकरण व पंडुलित परावर्तन के
कारण
Ø जिन तरंगो का ध्रुवण नही हो सकता वह
अनुदैर्ध्य तरंगे कहलाती है। एम्बुलेस पर
पीछे AMBULANCE सीधा जबकि आगे AMBULANCE उल्टा लिखा होता है।
Ø यदि दर्पण को थीटा घुमाया जाय तो परावर्तित किरण 2xथीटा
घूम जाती
है।
Ø समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण
की लम्बाई कम से कम आधी होनी चाहिए
Ø यदि मानव चाल दर्पण के सामने yk/h हो तो प्रतिबिम्ब चाल 2yk/h होगी
Ø दो समान्तर दर्पणों के बीच स्थित
वस्तु के अनन्त प्रतिबिम्ब प्राप्त होगे
Ø वाहनों में साइड शीशे में उत्तर
दर्पण प्रयोग होता है। जबकि दाढ़ी के लिए अवतल का प्रयोग किया जाता है।
Ø धूप के छाते मे ऊपर की सतह श्वेत
कलर की होती है।
Ø दर्पण बनाने में सिल्वर नाइट्रेड
(AgNo3) का एक तरफ से लेंस किया जाता है।
Ø यदि वस्तु अवतल दर्पण मे केन्द्र
पर है तो प्रतिबिम्ब समान आकार उल्टा वास्तविक प्राप्त होगा।
Ø लेन्स की क्षमता का मात्रक डायोप्टर होता है।
अवतल की क्षमता ऋणात्मक व उत्तल की धनात्मक होती है।
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Ø दृश्य प्रकाश में सबसे अधिक ऊर्जा
बैगनी रंग में होती है।
Ø आभासी प्रतिबिम्ब छोटा होता है तो
अवतल लेन्स होता है जबकि आभासी प्रतिबिम्ब यदि बड़ा हुआ तो उत्तल लेन्स होता है।
Ø कैमरे में , सूक्ष्मदर्शी में दुरदर्शी आदि
में सभी में उत्तल लेन्स का प्रयोग किया जाता है।
Ø जल में वायु का बुलबुला अवतल लेन्स की भाति
कार्य करता है। स्पष्ट दृष्टि की दूरी न्यूनतम 25 सेमी. होती है।
Ø एक व्यक्ति को दूर की वस्तु साफ ,पास की साफ नहीं तो वह -दूर दृष्टिदोष – उत्तल लेन्स का कारण है।
Ø आँख की रेटिना पर बना प्रतिबिम्ब वास्तविक
उल्टा होता है।
Ø फोटो ग्राफी में फिल्म पर यौगिक सिल्वर
ब्रोमाइट का प्रयोग जबकि फोटोग्राफी में प्रयुक्त हाइपो का रसायनिक नाम सोडियम थायोसल्फेट है। अबिन्दुकता
में कार्निया पूर्णत: गोल नहीं होती है। जिससे क्षैतिज या उर्ध्वाधर दिशा में धुधला दिखाई देता है।
Ø वर्णांधता में - शम्बारकार शैल कम हो जाती है।
जो अनुवांशिकी बिमारी है।
Ø निकट दोष के लिए अवतल लेन्स जबकि दूर दोष के
लिए उत्तल लेन्स का प्रयोग किया जाता है।
Ø जब प्रकाश हीरे से कांच मे जाता है। कुल
आन्तरिक परावर्तन होता है। दूरदर्शन प्रसारण में श्रव्य संकेतो का प्रेषण करने के लिए
आवृति माडूलन तकनीक प्रयोग की जाती है।
Ø प्रिज्म से 7 रंगों को अलग-अलग किया जा सकता है।
Ø रेटिना पर बना चित्र वस्तु से छोटा व उल्टा
होता है।
Ø वायुमण्डल में प्रकाश के विसरण का कारण -
धूलकण है
Ø प्रकाश सजावट या विज्ञापन के लिए विसर्जन नलिकाओ में प्रयुक्त होने वाली गैस निऑन
Ø अगर प्रकाश का आयतन कोण 90 है और अप के बाद कोण 30 है। तो माध्यम का अपवर्तनीय सूचक होगा - 2.0
Ø पानी का और कांच का अपर्वतनांक क्रमशः 4/3 व 3/2 है। कांच के सापेक्ष अपवतर्नाक
8/9 होगा। है
Ø जब कोई तरंग किसी दर्पण में से परावर्तित होती
है। तो परिवर्तन आता है उसके आयाम में
परवलयिक दर्पणों का
प्रयोग कार की हेड लाइट में किया जाता है।
Ø आवर्धक लेन्स अल्प फोकस दूरी सहित उत्तल लेन्स
होता है।
Ø लेन्स फ्लिंट कांच से बनाये जाते है।
Ø दन्त चिकित्सक, घडी साज आदि सभी अवतल लेन्स का प्रयोग करते है।
Ø आवृत्ति का SI मात्रक - हर्ट्ज (हेनरिच रूडोल्फ हर्ट्ज के
नाम पर)
Ø किसी लोलक की लम्बाई 4% बढा दी जाए तो आर्वत काल 2% बढ़ेगा (घड़ी सुस्त हो जायेगी) अर्थात यदि g का मान कम (पृथ्वी से ऊपर या नीचे जाने पर) -
घड़ी सुस्त होगा और आर्वत काल बढेगा
Ø अन्तरिक्ष में g का मान शून्य होने पर आर्वतकाल अनिश्चित हो
जाता है।
Ø रस्सी की गति, शान्त तालाब में पानी की गति - अनुप्रस्थ तरंग
है।
Ø वायु में संचारित ध्वनि तरंगों की प्रकृति -
अनुदैर्ध्य होती है।(स्प्रिंग की गति)
Ø सेकेण्ड लोलक का आर्वतकाल 2 सेकेण्ड होता है। जबकि ध्वनि तरंग निर्वात में
नही चलती है।
Ø अपश्रव्य तरंग 20 HZ से कम - हृदय का कम्पन्न, भूकम्पन तरंग, सुनामी तरंग आदि गैड़ा,हाथी,ह्वेल,स्टेथोस्कोप, आदि सुन सकते है।
Ø 20 HZ से अधिक 20000 से कम = मनुष्य श्रवण ध्वनि
Ø 20000 HZ से अधिक - पराश्रव्य- कुत्ते, बिल्ली, चमगादड,
व्हेल,गाल्टन सीटी, आदि उत्पन्न व सुन सकते है।
Ø जबकि इनका प्रयोग - संदेश भेजने, उद्योग में, समुन्द्र गहराई ( SONAR - Sound Navigation) कृषि में,
चिकित्सा में ECG (इकोकार्डियोग्राफी) and Ranging) में किया
जाता है
Ø यकृत, पित्ताशय,
गर्भाशय,गुर्दे,भुण परिक्षण में,
अल्टासोनोग्राफी के रूप
में करते है।
Ø तरंग दैर्ध्य का आरोही क्रम- गामा किरणे , एक्स किरणे, पराबैगनी किरणे, सूक्ष्म किरणे
Ø बेतार संचार में रेडियो तरंगो का जबकि
क्रिस्टलो की संरचना में एक्स किरणो का प्रयोग होता है।
Ø टी.वी. के रिमोट में अवरक्त विकिरण या रेडियो
तंरग का प्रयोग
Ø दृश्य प्रकाश का तंरग दैर्ध्य – 4000 A - 7800 A तक होता है।
Ø सी.टी स्केन में एक्स किरणे व MRI-Magnetic
Rasonance Imaging में चुम्बकीय तरंगो का प्रयोग होता है।
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Ø आती हुई कार की चाल ज्ञात करने के लिए -
यातायात अधिकारी - सूक्ष्म तरंगो(Micro waves) का प्रयोग करता है।
Ø माध्यम का ताप बढाने पर प्रकाश की गति पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ता है।
Ø रेडियो तरंग व प्रकाश तरंग की चालो का अनुपात
= 1:1 होता है। (लगभग बराबर)
Ø ध्वनि की चाल ठोस में अधिक (एल्यूमिनियम, निकिल, स्टील,
लोहा, पारा) द्रव में समुद्री जल , शुद्ध पानी में अधिक होता है
Ø गैसो में – हाइड्रोजन ,
हीलियम, वायु में (332 मी./सेकेण्ड), आक्सीजन होती है।
Ø चन्द्रमा पर वायुमण्डल अनुपस्थिति के कारण दो
व्यक्ति आपस में बात नहीं कर सकते है।
Ø डेसीबल – ध्वनि की तीव्रता की माप (10 वेल = 1डेसीबल) ध्वनि की तीव्रता इकाई)
Ø सामान्य बातचीत - 30-60 डेसीबल,.
Ø शोर – 80-90 डेसीबल
Ø WHO द्वारा नियत 45 डेसीबल,
Ø सोते व्यक्ति को जगाने में - 50 डेसीबल होता है।
Ø सितार व बासुरी में एक ही स्वर ध्वनि का भेद
गुणता(Quality)
के कारण होता है।
Ø आवाज पतली या तीखी तारत्व अधिक होने के कारण
महिला आवाज,
बच्चों की आवाज, मच्छर की आवाज आदि
Ø स्पष्ट प्रतिध्वनि के लिए- परावर्तन सतह का 16.6 मीटर पर होना आवश्यक है
Ø मैक संख्या से वायुयान की चाल या तीव्र गति
वाले आन्तरिक्ष यानो की चाल ज्ञात की जाती है। (डाप्लर प्रभाव)
Ø ध्वनि कान के परदे पर 1/10 सेकेण्ड पर जाती है। जबकि ध्वनि का तारत्व
आवृत्ति पर निर्भर होता है।
Ø मेघ गर्जन की आवाज बाद में चमक पहले का कारण है
प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से अधिक होता है।
Ø पुलो पर सैनिको को कदम ताल मना करने का कारण
अनुनादी अवस्था उत्पन्न होने से पुल
के कम्पन्न का आयाम बढ़
जाना है।
Ø ओसमियम (OS) मे घनत्व होने से (भारी धातु) ध्वनि की चाल इसमें सवार्धिक होती है।
Ø गामा किरणों कि आवृत्ति सर्वाधिक तथा सबसे कम
आवृति रेडियो तरंग की होती है।
Ø इको साउण्डिग एक तकनीक है। जिसका प्रयोग
समुन्द्र की गहराई ज्ञात करने में किया जाता है।
Ø एक ओर बन्द तथा दूसरी ओर से खुली
एक पाइप सभी विषम हार्मोनिक्स देती है।
Ø ध्वनि में परावर्तन, विवर्तन,व्यतिकरण हो सकता है। किन्तु
ध्रुवण नही होती है।
Ø रेल स्टेशन पर पहुचने से पहले
स्वाभाविक ध्वनि आवृत्ति से बढ़ती जाती है - डाप्लर प्रभाव के कारण
Ø जब टी.वि. ऑन करते है तो श्रृव्य
व दृश्य दोनो एक ही साथ शुरू होते है।
Ø प्रतिध्वनि तब सुनाई अच्छी देती
है जब परावर्तक तल का क्षेत्रफल अधिक हो
Ø जाली दस्तावेजो का पता पराबैगनी
किरणो द्वारा लगाया जाता है।
Ø बिग बैंग थ्योरी का सिद्धान्त-
डाप्लर प्रभाव पर आधारित है।
Ø टेप रिकार्टर पर फेरोमैग्नेटिक
चूर्ण का लेप होता है।
Ø एक लड़की झूले पर यदि खड़ी हो जाए
तो दोलन काल कम हो जायेगा। है यदि लोलक की लम्बाई को चार गुना किया जाए तो लोलक
झूलने का समय चार गुना हो जायेगा।
Ø ट्रांजिस्टर में सर्वाधिक प्रयोग
- सिलिकान का किया जाता है।
Thanks a lot
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